chandrayaan-3 mission : चंद्रयान-3 का क्या है मकसद, इसको बनाने में कितना आया खर्च, कब और कहां उतरेगा
चंद्रयान-3 का मकसद भी वहीं है जो चंद्रयान-2 का था। इसरों के मुताबिक, चंद्रयान तीन के तीन मकसद है। पहला- विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिग करवाना,
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। चंद्रयान-3 का आज यानी शुक्रवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर से 2:45 बजे लॉन्च कर दिया गया है। इस दौरान कई स्कूलों के 200 छात्रों के साथ भारी संख्या में लोग स्पेस सेंटर पर मौजूद थे। बता दें, चंद्रयान तीन में एक लैंडर, एक रोवर और एक मॉड्यूल लगा हुआ है। इसका कुल वजन 3,900 किलोग्राम हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर बधाई देते हुए जानकारी दी है कि, चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा (Space travel) में एक शानदार चैप्टर की शुरूआत की हैं। आगे उन्होंने कहा कि, यह भारत के हर व्यक्ति के सपनों और महत्वाकांक्षाओं को ऊपर ले जाते हुए ऊंचाइयों को छू रहा है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि हमारे वैज्ञानिकों के अथक समर्पण का प्रमाण है। मैं उनके उत्साह और प्रतिभा को सलाम करता हूं।
चंद्रयान-3 का क्या है मकसद?
चंद्रयान-3 का मकसद भी वहीं है जो चंद्रयान-2 का था। इसरों के मुताबिक, चंद्रयान तीन के तीन मकसद है। पहला- विक्रम लैंडर की चांद की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिग (soft landing) करवाना, दूसरा- प्रज्ञान रोवर को चांद की सतह पर चलाकर दिखाना। तीसरा- वैज्ञानिक परीक्षण करना।
बता दें, प्रज्ञान रोवर (Pragyan Rover) के साथ दो और विक्रम लैंडर (Vikram Lander) के साथ तीन पेलोड होगें। पेलोड को बोलचाल की भाषा में मशीन कहते हैं। चांद पर उतरने के बाद रोवर और विक्रम अलग हो जाएंगे। लेकिन ये दोनों आपस में कनेक्ट रहेगे। रोवर को मिलने वाली जानकारी लैंडर से साझा करेंगा और फिर यह लैंडर इसरो तक सूचनाएं भेजता रहेंगा।
चांद के कौन से हिस्से में उतारने की है चुनौती
चांद पर चंद्रयान-3 की सही सलामत लैंडिग हुई तो भारत चौथा देश बना जाएगा। इसके पहले अमेरिका, चीन और रूस पहुंच चुके है। बता दें, वैज्ञानिकों को चंद्रयान-3 को चांद के दक्षिण ध्रव पर उतारने की चुनौती है। अगर यह सफल रहा तो भारत दुनिया का पहला देश बना जाएगा। इसरो का अनुमान है कि, 5 अगस्त 2023 को चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। वहीं, इसके कुछ दिन बाद यानी 23 या फिर 24 अगस्त को चंद्रयान-3 चांद की सतह पर लैंडिंग कर सकता हैं।
वैज्ञानिक दक्षिण ध्रुव पर ही क्यों उतारेंगे?
इसरो ने सितंबर 2019 में चंद्रयान-2 को चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतारने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन लैंडर की हाई लैंडिग होने के कारण सफल नहीं हो सका। दोबार से पिछली गलतियों को न दौहराते हुए इसरो ने कई बड़े बदलाव किए है। ताकि इस बार लैंडिग करवाने में सफलता हासिल कर सकें।
बता दें, चांद के दक्षिण ध्रुव (south pole) पर उतरने का सपना केवल भारत का ही नही है, बल्कि अमेरिका (America), चीन (China) समेत पूरी दुनिया का है। अमेरीका स्पेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चांद के दक्षिण ध्रुव पर बर्फ और दूसरे प्रकृतिक संसाधन हो सकते है। इसके बाद भी कई अहम जानकारियां जुटाना बाकि है।
वहीं, चांद के दक्षिण ध्रुव पर अगर को शख्स खड़ा होता है तो उसे सूर्य क्षितिज रेखा में नजर आएगा। इस हिस्से का ज्यादातर इलाका छाया से डूबा रहता है। इसलिए तापमान कम होने की वजह से यहां पर पानी और खनिज पदार्थ हो सकते है। इसकी पुष्टी चंद्रयान-2 में भी हो चुकी है।
इस इलाके में जमा पानी अरबो साल पुराना हो सकता है। इसकी मदद से सौरमंडल के बारे में काफी अहम जानकारियां प्राप्त हो सकती है।
चंद्रयान-3 को बनाने में हुआ कितना खर्च
भारत के इस तीसरे मून मिशन को तैयार करने में करीब 615 करोड़ रूपये का खर्च होना बताया जा रहा है। करीब डेढ़ महिने के बाद पता इसकी पुष्टी हो सकेंगी की यह मिशन सफल रहा है की नहीं। अगर सफलता हासिल होती है तो दुनिया का पहला देश बना जाएगा। जिसने चांद के दक्षिण ध्रुव पर सफलता पूर्वक लैंडिग कर ली हैं।
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